A spiritual book for chakra balancing and meditation

Preface
About the Author
Table of Contents
Forewords
Readers Speak

Quick Query
Send
Reiki Classes for enhance you spiritual power How to get Reiki Healing by fee Reiki classes and spiritual book
Home Contact Us

spiritual healing, spiritual book, spiritual power

Forewords


धीर-गंभीर-चेता व्यक्ति संसार मे रहते हुए जीवन और जगत की घटनाओं से, महान व्यक्तियों के जीवन प्रसंगो से तथा महत्वपूर्ण ग्रंथो से निरंतर कुछ न कुछ सीखता रहता है। इसके अतिरिक्त कुछ व्यक्ति अपने जीवन में घटित घटनाओं से तथा स्वानुभूत परिस्थितियों से भी सीखते हैं, और जन-कल्याण की भावना से अपने अनुभवों का लाभ समाज को प्राप्त कराते हैं।

डॉ. श्रीमती रंजना अस्थाना की रचना ‘Wholesome Health - Liberation through Understanding’ एक ऐसी कृति है जिसके लेखन की प्रेरणा लेखिका को उस समय मिली जब वे स्वयं शारीरिक कष्ट एवं मानसिक वेदना से गुजर रहीं थी। लेखिका स्वयं आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान की निष्णांत एम.बी.बी.एस डॉक्टर हैं और देश के प्रसिद्ध शारीरिक-शिक्षण संस्थान में प्राध्यापिका रहीं है। यहां उन्होंने शरीर-विज्ञान के शिक्षण के साथ-साथ विद्यार्थियों के उपचार का कार्य भी किया। स्वानुभूत कष्ट के निवारण के लिये उन्होंने समस्त प्रचलित पद्धतियों के अतिरिक्त रेकी, योग, प्राणायाम और ध्याान को अधिक महत्व दिया।

अपने बहुमुल्य अनुभवों से उन्होंने यही सीखा कि आघुनिक चिकित्सा पद्धति में रोग के उपचार के लिये औषधियों का प्रयोग अपनी जगह ठीक है, किन्तु रोग से सम्पूर्ण मुक्ति पाने के लिये रोगी की जिजीविषा, आत्म-विश्वास तथा आत्म-बल अनिवार्य होता है। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिये शरीर-विज्ञाान की सूक्ष्मताओं को जानने के साथ मन, बुद्धि, आत्म-तत्व तथा परमात्म-तत्व के रहस्यों को जानना अनिवार्य है क्यों कि ब्रह्मांड और पिंड दोनो की संबद्धता से ही जीवन की दिशा निर्धारित होती है। इन तत्वों के रहस्यों को जानने और इसके परिणाम स्वरूप अपने कष्टों से पूर्ण मुक्ति की लेखिका को जो अनुभूति प्राप्त हुई, इसका लाभ समाज को मिले, यही वह मूल प्रेरणा है जो ‘Wholesome Health - Liberation through Understanding’ कृति के रूप में हमारे सामने आई है।

भारतीय जीवन पद्धति यहां की प्राचीन संस्कृति और सभ्यताओं पर आधारित रही है। हमारे ऋषियों ने जीवन और जगत के रहस्यों को सुलझाने के लिये जिन सिद्धांतो का अन्वेषण किया था उसीके आधार पर हमारी वर्तमान और भावी प्रगति का भवन खड़ा हुआ है। वे अमूल्य सूत्र और सिद्धांत इस देश के प्राचीन वांङ्मय, मुख्य रूप से उपनिषदों में पाये जाते हैं। आज हम जिस नवयुग में जी रहे हैं उसमें निर्बाध प्रगति के लिये तथा नव-जीवन का संचार करने के लिये हमें इन ग्रंथो, विशेषतः उपनिषदों की ओर देखना होगा, क्योंकि, उनमें ही वे मूल सूत्र छुपे हुए हैं जिनसे जीव और जगत का संतुलन बना रह सकता है।

संपूर्ण जगत घटनाओं का प्रवाह है। इस प्रवाह में एक घटना दूसरी घटना से आगे बढती चली जा रही है। सब जगह गति है, प्रवाह है। किन्तु क्या यह जगत प्रवाह मात्र है? प्रवाह के अतिरिक्त और कुछ नहीं? उपनिषद् का कथन है ’यह संपूर्ण प्रवाह परब्रह्म से अनुप्राणित है, उससे आविष्ट है उससे ढ़का हुआ है। ईस स्थिति का वर्णन ईशावास्य उपनिषद् की प्रथम ऋचा - ’’ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किंचित् जगत्यां जगत्। तेन त्यक्तेन भुंजीथाः मा गृधः कस्यस्वित् धनम्।’’ में किया गया है। भावार्थः ’हमें संसार को केवल बाहर से ही नहीं देखना है। हमें बाहर से दिख रहे अविरल प्रवाह के भीतर जाज्वल्यमान प्रगाढ़ यथार्थ सत्ता को देखना है।’ जो व्यक्ति इस अंतर्दृष्टि से घटनाओं एवं वस्तुओं के बाह्य रूप को नहीं, उसके आंतरिक रूप को देख लेता है उसके लिये संसार साध्य नहीं साधन हो जाता है।

जब हम अनुभव कर लेते हैं कि परब्रह्म संसार के अणु-अणु में व्यापक है तब हम संसार की हर वस्तु से एकात्मता का अनुभव करने लगते हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक ’त्रेहरन TRAHERNE* ने विश्व के साथ इस एकात्मता का अनुभव करते हुए लिखा ’’......तब समुद्र हमारी शिराओं में बहने लगता है। और सितारे हमारे देह के आभूषण बन जाते हैं।........ ’’ जो व्यक्ति ऐसा अनुभव करने लगता है उसके लिये हर वस्तु ब्रह्मानुप्राणित हो जाती है। और ’’मेरा-तेरा, मैं मालिक-तू सेवक’’ आदि समस्त तुच्छ भाव समाप्त हो जाते हैं। और न ही ऐसि स्थिति में अहंमन्यता (मैं) का कोई स्थान होता है।

ब्रह्मानुभूति की उच्चतम स्थिति में पहुंच कर साधक-रोगी न सिर्फ संम्पूर्ण शारीरिक पिडाओं से अपितु अन्य भौतिक विपदाओं से भी मुक्त हो जाता है। इसके विपरीत जो रोगोपचार के भौतिक उपायों में ही लीन रहता है वह जीवन भर रोगों से लड़ते-लड़ते अंततः परास्त हो जाता है।

शरीर भावना से क्रमशः उठते हुए ब्रह्मानंद तक पहुंचने की यह प्रक्रिया उपनिषदों में बहुत वैज्ञानिक तरीके से बताई गई है। वास्तविक आनंद शरीर अथवा अन्न को ब्रह्म समझने में नहीं है, ना ही शरीर के प्राण को ब्रह्म समझने में है, ना ही विचारशीलता के प्रतीक मन को ब्रह्म समझने में है, ना विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान को ब्रह्म समझने में है और ना ही ब्रह्म-साक्षात्कार से मिलने वाले आनंद को ब्रह्म समझने में है। अपितु वास्तविक आनंद ब्रह्ममय हो जाने में है। ’तैत्तिरीय’ उपनिषद् में ऋषि ने पिंड-शरीर के पंच-कोषों के वर्णन द्वारा इस ज्ञान को समझाया है। ये पांच कोष हैं - अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञाानमय कोष और आनंदमय कोष। साधक रोगी जैसे जैसे क्रमशः एक एक कोष के उपर उठता जायेगा वैसे वैसे वह भौतिक शरीर से परमात्व-तत्व के निकट पहुंच कर उस अद्वितीय आनंद की स्थिति में पहुंचेगा, जिसे बताने के लिये वाणी समर्थ नहीं होती। वह आनंद अनिर्वचनीय है।

इस रहसय को समझाते हुए कठोपनिषद् में यमाचार्य ने अपने शिष्य नचिकेता को कहा था - ’’उत्तिष्ठित जाग्रत प्राप्य वरान्य बोधत’’, अर्थात् ’उठो, जागो, श्रेष्ठताओं को प्राप्त करने के लिये श्रेष्ठ जनों का संग कर के उद्बुद्ध हो जाओ। यही आत्म-चिंतन का अध्यात्म मार्ग वास्तविक सत्य मार्ग है। यह छुरी की धार पर चलने जैसा कठीन मार्ग है।’

विदुषि लेखिका ने शरीर-विज्ञान की सूक्ष्मताओं का विवेचन करते हुए न केवल रोगों के कारण, निदान और उपचार की विभिन्न पद्धतियों का विश्लेषण बहुत प्रमाणिकता के साथ किया, अपितु शारीरिक, मानसिक व भावनात्मक रोगों का वास्तविक और पूर्ण उपचार तो आध्यात्मिक मार्ग पर चल कर ही संभव है, ऐसे भारतीय तत्व-चिंतन की महती-मनीषा को भी प्रमाणित किया।

डॉक्टर रंजना के‘Wholesome health’ ग्रंथ की सामाजिक उपयोगिता के इस पक्ष की मैं हृदय से प्रशंसा करता हूँ और समाज में इस ग्रंथ का अधिकाधिक लाभ लिया जाये एसी मंगल कामना करता हूँ।

डॉ. दिवाकर विद्यालंकार जी

Foreword by
Dr. Mulkraj Dass

Eminent Physicist & Renouned Spiritual Healer


Your health is the expression of your faith and hope in that divine power within your own self.

Edgar Cayce

I have known Dr. Ranjana Asthana for about three years now. Over this period of time, many of the patients she has sent to me have been healed through my touch therapy. I was surprised and happy when Dr. Asthana requested me to write the foreword for her book, Wholesome Health.

In her book, she has written with masterful, incisive clarity a brilliant and important guide to encourage us to be aware and accept full responsibility for our well-being at all levels: physical, emotional and spiritual and be an equal participant in our therapy, rather than passively rely only on the doctor, therapist or the healer.

She has authored this book, after her own experience of healing her illness through faith and proactive self-involvement. Writing with the power of first-hand experience, Dr. Ranjana raises a prophetic voice, offering a radical and passionate polemic in favor of self-reliance. The reader is taken on a journey that smoothly and intelligently alternates between an intensely personal story of recovery and fascinating, deeply researched factual material. She has written a brilliant book that will alter forever the way you look at illness and well-ness, indeed life itself.

It's been shown that the power of our minds can make us well. All of our thoughts act as either soothing cellular nutrition, or a poison dart that releases corrosive toxins. With our thoughts having such an impact on our recovery and well being, we should be aware and careful of not nurturing the kind of thoughts that will make a negative impact on our health and healing.

In this book, Dr. Ranjana leaves no stone unturned - ranging widely into science, medicine, alternative therapies and spirituality - in her quest to instill the faith required to believe that through the power of the divine spirit within ourselves we can free ourselves of any illness, may it be an innocent accident or ‘karma born’. The raw power of her brilliant and sustained argument will inspire your own quest for wholesome health.

Dr. Ranjana makes us stop and call for recovery and to play an active role in our own treatment. I wish this in-heart expression of her's would help many to uplift the quality of health and happiness minimizing the dosage of toxic medicines.

The natural healing force within each of us is the greatest force in getting well- Hippocrates

Dr. Mulkraj Dass


Foreword by
Maj. Gen. S.N. Mukherjee

Vice Chancellor LNUPE, Gwalior


Maj. Gen. S.N. Mukherjee
Vice Chancellor
LNUPE, Gwalior

It gives me immense pleasure to write the foreword note for the book entitled ‘Wholesome Health - A Journey from Pain to Liberation’, authored by Dr. Ranjana Asthana, a senior faculty of this university. Dr. Asthana a doctor by qualification, has the experience of more than two and a half decades of teaching subjects connected with health science and fitness to the students of this university apart from treating the ailments they suffered.

I had the privilege to proof-read all twelve chapters of the book and must admit that each chapter is as interesting as the previous one. Her efforts in bringing the science (theory) and art (practice) together in a unique way is commendable. Many a times her personal experience of life, both at work and at home, can be felt while going through this book, as she has written with full conviction.

In her efforts to unveil the path to wholesome health she has suggested various ways and means and left it to the individual to follow the path and achieve their goal.

I am sure this effort of her will benefit each and everyone irrespective of sex, cast, creed, religion, young or old. I wish all the readers to achieve the aim, for which this book has been written, i.e.

‘the journey from pain to liberation'.

Maj. Gen. S N Mukherjee

 

 
© wholesomehealth.in   Developed By : Addmen Institute Management Software Institute Management Software